राजनीति में निरंतर बढ़ते कदम का नाम सुरेंद्र सिंह राठौड़ दूसरी बार बने सरपंच

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मसूदा (ARK News)। राजनीति में आने वाले लोगों के वर्षों की उपासना के बाद किसी पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है यह कोई नई बात नहीं है पर यदि किसी व्यक्ति को राजनीति में कदम रखते ही निरंतर सफलता मिलती रहे तो समझना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति में कोई न करेइध््र काबिलियत अवश्य है। एक ऐसी ही काबिलियत वाले व्यक्तित्व में सुरेंद्र सिंह राठौड़ का नाम लिया जा सकता है। राजनीति की पहली सीढ़ी वार्ड पंच अध्यक्ष सरपंच ही माना जाता है। यह एक अलग बात हैं कि सुरेंद्र सिंह राठौड़ की माता वार्ड पंच रह चुकी पर सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने प्रथम भाग्य सरपंच के चुनाव में आजमाया और राजनीति की सरपंच रूपी पहली सीढ़ी पर पांच रखते ही सुरेन्द्र सिंह राठौड़ को सरपंच बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और पूरे 5 साल सरपंच रहने के बाद गत वर्ष फरवरी माह में हुए पंचायत राज चुनाव में सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने दोबारा सरपंच का चुनाव लड़ा और पिछली बार से इस बार अधिक मतों से विजयी रहे इस बार सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने केवल दोबारा ही सरपंच बने अपितु हाल ही में संपन्न हुए पंचायती राज चुनाव में श्री राठौड़ ने उनकी पत्नी मीनू कंवर राठौड़ को मसूदा पंचायत समिति के सदस्य चुनाव लड़ा कर विजय श्री दिलवा दी श्री राठौड़ केस्वयं के सरपंंच होने एवं पत्नी के पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित होने के दो राजनीतिक पदों तक ही सीमित ही नहीं रहे और अपने प्रयासों से पत्नी मीनू कंवर राठौड़ को प्रधान पद पर बैठने में महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल की है। सुरेन्द्र सिंह राठौड़ का जन्म 6 मई 1983 को प्रकाश कंवर एवं पिता शैतान राठौड़ के यहां हुआ।
सुरेद्रं सिंह राइौड़ का जन्म यद्यपि ननिहाल जयपुर जिले के ग्राम हथेली में हुआ था, पर मूल निवास मसूदा खंड़ क्षेत्र के ग्राम पंचायत शिखरानी के ग्राम नागर में होने से शिक्षा प्राप्त करने से लेकर राजनीति का सफर भी यहां से शुरू हुआ। सुरेन्द्र सिंह राठौड़ की माता प्रकाश कंवर वार्ड नम्बर11 से वार्ड पंच रही। मूल रूप से मसूदा पंचायत समिति क्षेत्र के अधीन शिखरानी ग्राम पंचायत के नागर ग्राम के रहने वाले सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने वर्ष 2015 में ग्राम पंचाय शिखरानी के सरपंच के लिए चुनाव लड़ा और 118 मतों से विजयी रहे। 24 जनवरी 2015 से 22 जनवरी 2020 तक ग्राम पंचायत शिखरानी के सरपंच रहे सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने 5 साल के सरपंची कार्यकाल में सरपंच पद पर रहते हुए ग्राम पंचायत की जनता को अपने पदीय कार्य के अनुरूप पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण भाव से तो सेवा की ही साथ ही जरूतरमंदों एवं अपेक्षित लोगों को अपने व्यक्तिगत खर्च से भी राहता पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शायद यही कारण रहा कि वर्ष 2020 में हुए पंचायत राज के चुनाव में सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने पुन: सरपंच का चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक 766 मतों से विजयी होकर एक बार पुन: शिखरानी ग्राम पंचायत के सरपंच बनने का सौभाग्य प्राप्त सुरेंद्र सिंह के लिए सौभाग्य की बात एक और यह भी रही सर्वप्रथम 118 मतों में से ही विजयी रहे पर दोबारा सरपंच का चुनाव लडऩे के दौरान 766 से विजयी रहने के कारण सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राठौड़ को जनता ने प्रथम बार सरपंच बनाने में भले ही कम मातें से विजई बनाया हो पर इस बार ऐतिहासिक विजय दिलाई है।
राठौड़ ने पुन: सरपंच बनने के मामले में जनता से किए गए वादों एवं किए गए सेवा कार्यों का ही परिणाम था कि जनता ने पुन: सरपंची का ताज पहना दिया। यहां पर इस बिंदु का उल्लेख किया जाना नितांत आवश्यक है कि किसी भी जनप्रतिनिधि का दोबारा मौका मिलना बड़ा कठिन होता है हाँ यदि कोई जनप्रतिनिधि जनता की सेवा के लिए किए गए अपने वादों पर खरा उतरने पर ही किसी को दोबारा मौका मिलने की उम्मीद की जाना स्वभाविक है। सुरेन्द्र सिंह राठौड़ के एिल राजनीतिक सौभाग्य की बात करें तो उन्हें दोबारा शिखरानी का सरपंच बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ही है साथ ही हाल ही में पंचायत राज के हुए चुनाव में राठौड़ की पत्नी मीनू कंवर को प्रधान पद पर पदासीन होने में राठौड़ एवं मीनू कंवर दोनों के लिए बेहद सौभाग्य की बात कही जा सकती है। इसमें सुरेंद्र सिंह राठौड़ के व्यक्तिगत संपर्क एवं व्यक्तिग व्यवहार को महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। अपने सेवा कार्य एवं व्यक्तिगत व्यवहार से जनता से वोट लेना एवं राजनीति के उच्च पायदान पर छलांग लगाने के ममाले की बात करें तो सुरेंद्र सिंह राठौड़ के स्वयं के सरपंच बनने के अलावा उनकी धर्मपत्नी मीनू कँवर को प्रधान बनाने के मामले में यदि प्रकाश डाले तो सुरेंद्र सिंह राठौड़ को एक सफल राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है। जो जनता से जुड़े रहकर जन सेवा के कार्य कर स्वयं के द्वारा सरपंच बनने के साथ ही उच्च पदस्थ राजनेताओं के संपर्क में रह कर पत्नी को पंचायत समिति के महत्वपूर्ण राजनीतिक पद पंचायत समिति प्रधान पद पर पदासीन करने में सफल होकर राजनीति क्षेत्र में एक सफल राजनीतिज्ञ के रूप में महत्वपूर्ण सफलता हासिल करना सबके सामने प्रत्यक्ष है। सुरेंद्र सिंह राठौड़ के लिए स्वयं का सरपंच होना पत्नी का प्रधान पद पद होना पति पत्नी के एक साथ राजनीतिक पद होना अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात होना स्वाभाविक ही है यहां पर इस बिंदु का उल्लेख किया जाना नितांत आवश्यक है कि मसूदा पंचायत समिति के राजनीतिक क्षेत्र में संीावत या यह पहला मौका होगा जब पति किसी ग्राम पंचायत का सरपंच पद पर पदासीन हो। सुरेंद्र सिंह राठौड़ को राजनीतिक अनुभव कितना है यह तो उनके इस कम उम्र में ही लगातार दूसरी बार सरपंच बनने एवं पत्नी को पंचातय समिति सदस्य का चुनाव लड़ा कर प्रधान पद पर पदस्थापित करने से उनके राजनीतिक अनुभव का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने अपने प्रथम सरपंच कार्यकाल के दौरान जनता की सेव करने का प्रमाण दोबारा सरपंच बनने का प्रत्यक्ष रूप में मौजूद है। शिखरानी ग्राम पंचायत क्षेत्र का मुझे लंबे समय से व्यक्तिगत अनुभव भी है। और सुरेंद्र सिंह राठौड़ के सरपंची कार्यकाल का अनुभव कुछ ज्यादा ही रहा। इसका एक कारण तो यह था कि शिखरानी ग्राम पंचायत के लोगों के एिल अपने जनप्रतिनिधि होने के कत्र्तव्य को लेकर सरपंच सुरेंद्र सिंह राठौड़ द्वारा आए दिन जनता के कार्यो के लिए कार्यालयों में आने एवं संबंधित मामलों को मिडिया के माध्यम से शासन एवं प्रशासन के समक्ष रखकर मजबूती के साथ रखकर किए जाने वाले संघर्ष के दौरान सुरेंद्र सिंह राठौड़ जनता के कार्यों के लिए संबंधित अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि अथवा जो भी संबंधित व्यक्ति चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो पर जनहितार्थ कार्यों को करवाने के लिए तब तक जूंझते रहना एवं तबि तक पीछा नहीं छोड़ते जब तक कि संबंधित कार्य पूरा नहीं हो जाता। इस दौरान काफी अनुभव हुआ कि जनप्रतिनिधि यदि अपनी पूरी ईमानदारी से जनता के कार्य करे तो जनता संबंधित जनप्रतिनिधि के लिए मौका आने पर तैयार रहती है। इसका महत्वपूर्ण उदाहरण सुरेंद्र सिंह राठौड़ के दुबारा सरपंच बनने का सबके सामने है। सुरेन्द्र सिंह राठौड़ अपनी जनता के जायज कार्यों को करवाने के लिए अपनी पर आकर भिडऩा स्वभाव में देखा यहीं दूसरी और उनका सहयोग करने वाले का पूरा सम्मन करना भी उनकी आदत में सुमार रहा है। जो आज भी है और दूसरों को सम्मान देने की प्रवृत्ति में शायद और अधिक इजाफ हुआ हो इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता। मेरा जहां तक अनुभव है सुरेन्द्र सिंह राठौड़ के अपनी प्रथम सरपंची कार्यकाल में जो कुछ भी जनता के लिए किया उसी के परिणामस्वरूप आज जिस उचाइयों को छूकर राजनीतिक कद में जिस प्रकार का इजाफा हुआ है यह भविष्य में और भी उचाईयों को छू ले तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हालांकि सुरेन्द्र सिंह राठौड़ की जितनी उम्र है उतना मुझे पत्रकारिता का अनुभव प्राप्त है और उसी अनुभव के आधा पर मैं यह कह सकता हंू कि यदि सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने अपनी सरपंची काल एवं पत्नी के प्रधान काल के दौरान यदि पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से पद का निर्वाह करते हुए उनके प्रथम सरपंच कार्यकाल के दौरान जिस प्रकार जनता की सेवा की है। उसी प्रककार अब जब स्वयं पत् नी दोनों ही राजनीतिक पद पर है तो ऐसी स्थिति में पिछली बार की अपेक्षा इस बार यदि सेवा भावना की ओर बढ़ाया गया और जनता के दुख दर्द में भागीदार रहे तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में ऊंचाईयों को छूने में कोई नहीं रोक सकता।
यह उनके भविष्य के उज्जवज होने के संकेत हो सकते हैं पर उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को पद और प्रतिष्ठा मिलने के बाद संबंधित व्यक्ति का रहन सहन अथवा व्यक्तिगत व्यवहार में बदलाव निश्चित रूप से आता है यहां तक तो ठीक है पर किसी भी व्यक्ति को पद प्रतिष्ठा मिलने के बाद सेवा कार्य अथवा व्यवहार को और अधिक मृदुभाषी बनना चाहिए। पर प्राय यह देखा गया है की किसी भी व्यक्ति को पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होने पर संबंधित व्यक्ति में बदलाव आना स्वाभाविक है। यह भले ही आम लोगों के लिए हो पर सुरेंद्र सिंह राठौड़ के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है कि अब तक वे केवल एक ग्राम पंचायत के सरपंच ही थे पर अब ये उस ग्राम पंायत के सरपंच होने के साथ-साथ पत्नी के प्रधान जैसे महत्वपूर्ण पद पर पद स्थापित होने के बाद एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दिखाई दे रही है। उन्हें जो भी पद प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है उसमें वृद्धि करने के लिए आमजन की सेवा के साथ ही पद्रयी कार्य से संबंधित सेवा एवं सहनशक्ति रखने के साथ ही पढ़ के गौरव को बनाए रखने लिए व्यक्तिगत व्यवहार में तब्दीली किया जाना अत्यंत आवश्यक है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव से राठौड़ को मेरी एक और नेक सलह भी है कि यद्यपि वे राजनीति में माहरि हो सकते है पर इस अनुभव को भी ध्यान में रखना चाहिए कि मिश्री और नमक का रंग सफेद ही होता है पर दोनों की तासीर अलग-अलग होती है। और यह सर्वविदित भी है कि सफेद रंग वाली इन दोनों खाद्य वस्तुओं में नमक अपना अलग प्रभाव रखता है वहीं दूसरीं और मिश्री का प्रभाव रखता है वहीं दूसरी ओर मिश्री का प्रभाव अपना अलग ही होता है अबत यह राठौड़ पर निर्भर करता है कि वे दोनों सफेद वस्तुओं के प्रभाव को समझ लेंगे। इसके बावजूद भी उनके द्वारा किए जाने वाले निर्णय में उनका सर्वाधिक सुरक्षित है। पर एक बात और भी है जिसे ‘यों की त्योंÓ कह देने में कोई हज्र नहीं है की व्यक्ति चाहे किसी भी पद पर हो अथवा कितनी भी प्रतिष्ठा वाला हो पर किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए पद एवं प्रतिष्ठा के अनुरूप से निर्णय लेने की अपेक्षा किया जाना स्वाभाविक है।


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