राज्य पशु ऊंट की प्रजाती खत्म होने की कगार पर

राज्य पशु ऊंट की प्रजाती खत्म होने की कगार पर
Spread the love

अनदेखी खत्म होने की कगार पर राज्य पशु ऊंट की प्रजाती।

उंटपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने नही बनाई कोई योजना।

ऊंट पालकों की समस्याएं सुनने वाला कोई नही।

शाहपुरा,1 सितंबर24। राजस्थान सरकार ने 2014 में ऊंट को राजस्थान का राज्य पशु घोषित किया था। लेकिन ऊंटों व ऊंट पालकों की सुविधाओं की अनदेखी के कारण जिले में ऊंटों व ऊंट पालकों की तादात लगातार घटती जा रही है जो एक चिंता का एक विषय बना हुआ है। बनेडा तहसील श्रेत्र के जालिया ग्राम पंचायत के ऊंट पालक धन्ना लाल रेबारी, गोपीलाल रेबारी, मुकेश रेबारी, दिनेश रेबारी, भंवर रेबारी तथा ऊंट पालने वाले रेबारी समाज के लोगों ने बताया कि सरकार की अनदेखी के कारण ऊंटों की प्रजाती धीरे धीरे समाप्त होने के कगार पर है। सरकार द्वारा ऊंटों व उनके पालकों की लम्बे समय तक सुद नही लेने व उनकी पीड़ा नही सुनी जा रही है।

यह समस्याएंः- ऊंट पालकों ने बताया कि ऊंट घर व बाड़ों में रहने वाला पशु नही, खुल में रहने वाला पशु है। चार माह गर्मी में सुखे खेतों के आसपास पेड़ों की पत्तियों ही इनका निवाला बनती है।

बारीश में भी रात मे उंटों व चरावाहों को रात जंगल में गुजारनी होती है। बाकी 8 माह चरावाह जंगलों में की ओर लेजाते है तो वनकर्मी वन श्रेत्र नष्ट होने का हवाला देते हुए ऊंटों को वन श्रेत्र में चराने नही देते। जबकि ऊंट पेड़ नष्ट नही करते केवल पत्तियां खाते है कुछ ही दिनों में पत्तियां पुनः आजाती है। वनकर्मियों द्वारा ऊंट चराने पर राशि वसूलने का भी बड़ा आरोप लगाया।

शाहपुरा जिले के बनेड़ा श्रेत्र में बरण, लापियां, जालिया, मानपुरा गांव ऊंट पालक रेबारी जाती के ही है। जिसमें से जालिया व लापिया के दो परिवारों के पास लगभग 60 ऊंट ही जीवनापार्जन का साधन है। भीलवाड़ा व शाहपुरा जिले में लगभग 300 से 400 करीब ही ऊंट बचे है। इस कारण मात्र डेढ़ दर्जन करीब परिवार ही ऊंट पालक बचे है।

आयुर्वेद में ऊंटनी के दूध का औषधीय महत्व: खुले जंगल में चराने के लिए चरावाह को दिन में व रात में साथ में रहने से सुरक्षा के लिहाज से सरकार चरावाह को कोई लासेंसी शस्त्र नही देती।

सरकार ऊंट पालकों के लिए गांवों में जमींन आंवटित करवाने की मांग के साथ बताया कि जहां गधी के दूघ की मांग विश्व में फैल रही है, गधी के दुघ डेयरी बन रही है। उसी तरह ऊंट के दुघ की जिले में एक डेयरी सरकार स्थापित करें। मादा ऊंट एक समय में 4 से 5 लीटर दुघ देती है। आयुर्वेद में ऊंटनी का दूघ एक औषधी के रूप में कई बिमारियों में यह उपयोगी है। ऊंट पालन को बढवा देने के लिए सरकार ने आज तक कोई योजना नही बनाई यहां तक ऊंट पालने के लिए बैंक ऋण, निशुल्क चिकित्सा सुविधा आदि कोई योजना भी नही है।

Dev Krishna Raj Parashar - Shahpura

Dev Krishna Raj Parashar - Shahpura

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *