एआई की अनियंत्रित दौड़ – एक तकनीकी क्रांति या सामाजिक संकट?

प्रतीक पाराशर
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के अगुवा माने जाने वाले जैफ्री हिंटन की चेतावनी सचमुच गौर करने योग्य है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि एआइ ने खुद के लिए कोई नई भाषा का निर्माण कर लिया तो ये इंसानों की पकड़ से बाहर होगा। इतना ही नहीं, हम यह भी पता नहीं कर पाएंगे कि वह क्या सोच रहा है। अभी एआइ अंग्रेजी में सोचता है। हिंटन एक ऐसे वैज्ञानिक हैं, जो लगातार दुनियाभर की सरकारों से एआइ पर सत नियमन की मांग कर रहे हैं। हिंटन के इस बयान से पहले चैटजीपीटी निर्माता
ओपनएआइ की एक रिपोर्ट भी लोगों को चौंका चुकी है, जिसमें कहा गया था कि एआइ मॉडल बार बार अपनी मर्जी से तथ्य गढ़ रहे हैं। खास बात यह है कि दोनों तथ्य आम लोगों की ओर से नहीं, बल्कि एआइ की गहरी समझ रखने वालों की ओर से सामने आए हैं।
भारत जैसे देश में इस मुद्दे पर बहस का यह सही वक्त है। विशाल आबादी वाले इस देश में तकनीक इस्तेमाल की छूट के खतरे कम नहीं है। जिस तरह के खतरे सामने आने की बात कही जा रही है, उसे देखते हुए जल्द से जल्द एआइ के इस्तेमाल को लेकर भी अब कानून बनाने की जरूरत वक्त का तकाजा है। यह इसलिए भी क्योंकि, बेरोजगारी, डिजिटल असमानता जैसे सामाजिक संकट पहले से ही यहां चुनौती बनकर खड़े हैं। ऐसे समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल अनियंत्रित और बिना नीति के होता रहा तो समाज के लिए एक गंभीर संकट भी बन सकता है। एआइ यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब केवल रोबोट या विज्ञान का विषय नहीं रहा। यह तकनीक अब हमारे रोजमर्रा के जीवन में प्रवेश कर चुकी है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि भारत में बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए एआइ आधारित ऑटोमेशन को बगैर योजना के अपनाया गया तो लाखों नौकरियां खतरे में आ सकती हैं। वैसे भी इसकी उपयोगिता उन्हीं क्षेत्रों में संभव है, जहां इंटरनेट, तकनीकी शिक्षा और संसाधन उपलब्ध हैं। भारत के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में यह सुविधा नहीं होने पर समाज दो वर्गों में बंट जाएगा एक जो तकनीक का उपयोग कर आगे बढ़ेगा और दूसरा, जो बहुत पीछे छूट जाएगा। देश में डेटा की सुरक्षा को लेकर गंभीर संकट की भी आशंका रहेगी। डेटा प्राइवेसी के मामले में हम वैसे ही काफी पीछे हैं। आम नागरिक की निजता के खतरे के साथ-साथ डीपफेक वीडियो और भ्रामक खबरों के दुष्परिणाम हम पहले ही देख चुके हैं।
समय आ गया है कि भारत को भी एआइ पर स्पष्ट नीति और कानूनी ढांचा तैयार करना चाहिए। वहीं डेटा प्रोटेक्शन कानून को सती से लागू करना चाहिए। एआइ शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम और व्यावसायिक प्रशिक्षण में शामिल करने के साथ-साथ एआइ के अनियंत्रित प्रयोग से होने वाली समस्याओं पर खुले मंच पर चर्चा जरूरी है। एआइ जैसी तकनीक के लिए नियमन और विवेकपूर्ण उपयोग अनिवार्य है।