गांव की गलियों से गुजरता है देश के विकास का रास्ता)

गांव की गलियों से गुजरता है देश के विकास का रास्ता)
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(गांव की गलियों से गुजरता है देश के विकास का रास्ता)
कहा जाता रहा है कि हर काबिल इंसान के पीछे कोई ना कोई मददगार अवश्य होता है अगर यही कथन हम समसामयिक विकास के साथ जोड़े तो यह् भी सत्य है कि हर विकास के पीछे कुछ बर्बादिया अवश्य होती है। उदाहरणस्वरूप हम महसूस कर सकते है कि जब कही कोई डेम बनता है तो सैकड़ो बीघा जमीन ओर तो ओर कई गावों का वर्चस्व भी समाप्त हो जाता है वैसे ही कही कोई सडक बनती है तो हजारों पेड़ो को अपना जीवन बलिदान करना पड़ता है। शायद अब हम थोड़ा आभास करके मान सकते है कि ऊपर जो कथन लिखा है वह काफी हद तक सही साबित होता है।
तत्कालीन परिस्थितियों में हर इंसान अपने विकास की मेराथन जीतने का प्रयास कर रहा है ओर तो ओर गाँव कस्बे बन रहे है, कस्बे शहर और शहर महानगर बनते जा रहे है। क्या हमने कभी सोचा है कि इस विकास की मेराथन के पीछे कुछ नष्ट होता जा रहा है??
आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है, इसलिए इस बात की आप कल्पना भी नहीं कर सकतें कि गाँव के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है. गाँधी जी ने कहा था – अगर आप असली भारत को देखना चाहते हैं तो गांवों में जाएँ. क्योंकि असली भारत गांवों में बसता है. भारत का ग्रामीण जीवन, सादगी और शोभा का भण्डार है।
में जानता हु कि आदर्श ग्राम निर्माण का काम उतना ही कठिन है जितना कि पूरे देश को आदर्श बनाना। स्वतंत्र भारत के सामने मुख्य समस्या उसके नवनिर्माण की है। चुकि भारत गावों में बसता है इसलिए बिना गावों को उन्नत किये देश का विकास कठिन है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कई दशकों पहले का कथन आज भी प्रासंगिक है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने ओर उसके नवनिर्माण के लिए बुनियादी ढाचे का विकास बहुत जरूरी है। नि:संदेह किसी भी देश की प्रगति ओर आर्थिक विकास में बुनियादी ढांचे की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इस ढांचे की गुणवत्ता किसी भी देश की प्रगति का मापदंड होती है। यह बुनियादी ढांचा निजी ओर सर्वजनिक, भौतिक ओर सेवा सम्बन्धी ओर सामाजिक व आर्थिक किसी भी तरह का हो सकता है।
ग्रामीण अवसरंचना के विकास के बिना आत्मनिर्भर गावों ओर नये भारत की कल्पना भी नही की जा सकती है। सरकार इस बात से भलीभांति परिचित है ओर इसीलिए अपने निर्धारित लक्ष्य को साधते हुए कोरोना काल में भी बुनियादी ढांचे के निर्माण के काम में ढील नही आने दी बल्कि मनरेगा के तहत रिकॉर्ड परिसम्पत्तियों का निर्माण गावो में हुआ। अगर इसी गति से गावों में विकास की प्रक्रिया जारी रहती है तो वह दिन दूर नहीं है जब आत्मनिर्भर गावों का सपना साकार होगा।
ग्राम पंचायतो के साथ साथ हमारे गावों में ग्राम समुदाय को जोड़ते हुए समग्र एवं निरंतर् ग्राम विकास हेतु कुछ ग्राम समितियों का गठन भी किया गया है जिसमे पंचायतीराज के साथ साथ सभी वर्गों एवं महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व शामिल है। केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित लगभग सभी योजनाओं के सफल संचालन हेतु ग्राम समितियों का गठन किया गया है लेकिन कई प्रमुख योजनाएं ऐसी भी है जिनका पुरा दारोमदार ग्राम समितियों का है मगर ग्राम पंचायतो को ही सारी जिम्मेदारियां निभानी पड़ रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमने योजना की रुपरेखा अनुसार समिति तो गठित कर ली मगर उस योजना के प्रति उनका क्षमतावर्धन नहीं किया है। कई गावों में कई समितियाँ ऐसी भी है जिनके सदस्यो को नहीं पता कि उनका नाम किसी समिति में शामिल है ओर अगर पता भी है तो उनकी जिम्मेदारी केवल बैठक रजिस्टर में हस्ताक्षर तक सिमित है। ग्राम स्तर पर हो रहे ऐसे प्रयोगों से यह बात आइने की तरह साफ है कि अगर देश का विकास करना है तो सबसे पहले ग्राम पंचायतों को साथ लेकर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जागरूक करना होगा। इसलिए सरकार को भी यह बात ध्यान रखनी होगी कि ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए जब भी कोई योजना तैयार की जाए या अमल में लाई जाए तो सबसे पहले योजना के महत्व के बारे में ग्राम पंचायतों एवं ग्राम समुदाय को विस्तार से जानकारी देकर जागरूक किया जाए और योजना को सफल बनाने के लिए पूरा दायित्व ग्राम पंचायतों के साथ साथ ग्राम समितियों को भी सौंपा जाए। इसके अलावा ग्राम पंचायतों को भी चाहिए कि वे भी देश के विकास व जनहित में अपना पूरा योगदान दें।
जैसा कि सर्वविदित है कि इन समितियों में सदस्यता उसी ग्राम के निवासियों की है यानि कि ग्राम के विकास की डोर ग्राम वासियो के हाथ में ही है ओर अगर ये ग्रामवासी किसी योजना के लिए कार्य करते है तो यही कहा जायेगा कि उस ग्राम के विकास के पीछे ग्रामवासियों का हाथ है ओर तभी बनेंगे हमारे गांव आदर्श ओर भारत बढ़ेगा आत्मनिर्भरता की राह पर…..
आनन्द शर्मा
राष्ट्रीय प्रशिक्षक
राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज संस्थान, भारत सरकार


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