गोबरधन बनाम सामुदायिक अतिक्रमण का सदुपयोग

गोबरधन बनाम सामुदायिक अतिक्रमण का सदुपयोग
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गोबरधन बनाम सामुदायिक अतिक्रमण का सदुपयोग

हमारे ग्रामीण भारत में कृषि और पशुपालन बहुत ज्यादा महत्व रखते है साथ ही गावों के तकरीबन 50 प्रतिशत से अधिक परिवारों के जीवन यापन का जरिया भी कृषि और पशुपालन ही है। प्राचीन काल से हम सुनते और देखते आ रहे है कि हमारे बड़े बुजुर्ग गोबर को धार्मिक भावना का प्रतीक मानते रहे है इसी सन्दर्भ में गावों में आज भी जब गोवेर्धन की पूजा होती है तो गोवेर्धन पर्वत को गोबर से ही बनाकर परिवार की महिलाएँ उसकी पूजा करती है और घर में खुशहाली की कामना करती है। पुराने समय में हमारे पूर्वज जब जानवरों को सुबह अपने बाड़े से निकालते थे ओर जब कोई मवेशी गोबर करता था तो कई बार उस गोबर के चारो तरफ गोला बना दिया जाता या, उस गोबर पर कोई पत्थर का टुकड़ा या चारे का मोटा तिनका लगा देते थे जिससे उस गोबर पर मालिकाना हक़ माना जाता था ओर कोई भी अन्य ग्रामीण उसे नही उठाता था अगर किसी ने उठा लिया तो कई बार बहस होती थी यहाँ तक कि झगड़े की नौबत भी आ जाती थी।
उस पुराने समय से लेकर आज भी हमारे गावों में गोबर को इज्जत का प्रतीक माना जाता है। हम पूरे वर्ष अपने गोबर को एक जगह संजोते है ओर मानसून से पूर्व उसे अपने खेतों में बिखेर देते है। इस वर्षभर की प्रक्रिया में हमारे घर के सदस्य काफी मेहनत करते है क्यूकी उन्हे उम्मीद है कि ये गोबर हमारी फसलों को ताकत देगा। लेकिन क्या हमने कभी इसका दूसरा पक्ष भी जानने की कोशिश की है या शायद हम जानते भी है लेकिन इस मुद्दे पर हम बात नहीं करना चाहते क्योंकि कही ना कही हम भी इसमें भागीदार है। वर्तमान में गोबर के प्रति हमारी उदासीनता है क्योंकि कृषि में हमने गोबर की जगह रासायनिक खाद को दे दी है। गांव का वातावरण दूषित होता जा रहा है हम देखते है कि अधिकतर गावों में पक्की सड़के बन चुकी है जिस कारण हमारा गोबर गाड़ियों के पहिये द्वारा पूरे गांव की सडक को ढक रहा है।
वर्षभर गोबर को रोड़ी ( जो कि तकनिकी रूप से उचित नहीं है) में डाला जाता है जिस कारण कड़क धुप में गोबर का सुखना ओर बारिश में गोबर की ताकत माने जाने वाला पीला पानी बारिश के पानी के साथ बहकर निकल जाता है अब हम महसूस कर सकते है कि बाकी बचा हुआ गोबर हम अपने खेत में खर्चा करके डालने से कोई फायदा हमारी फसल को शायद नहीं है। अधिकतर गावों में गांव का ठोस कचरा जैसे प्लास्टिक, रबर, थर्माकोल, थेलिया, बिजली एवं अत्याधुनिक हानिकारक माने जाने वाले बेकार उपकरण भी हमारी रोडियो में डाले जा रहे है। हम अंदाजा लगा सकते है कि जब ये ठोस कचरा हमारे खेत की मिट्टी मेँ डाला जायेगा तो क्या होगा। आज हम ऐसी स्थिति में खड़े है जहाँ अगर हम अपनी फसल में रासायनिक खाद नहीं डाले तो फसल परिपक्व नहीं होगी और ये हमारी मजबूरी बन चुकी है।
हम किसी भी गांव का भ्रमण करे तो हम देखते है कि सडक या रास्ते के दोनों तरफ गांव वालो ने अपने गोबर की रोड़ियाँ बना रखी है जो हमारे गांव के सौंदर्य में दाग के समान है। दूसरी तरफ अगर हम ऐसा नही करे तो वर्षभर गोबर इकट्ठा करना हमारे लिए परेशानी का सबब बन जायेगा। इस हेतु सुझावस्वरूप विचार है जो हमे इस परेशानी से निजात तो दिलाएगा साथ ही गोबर को और अधिक ताकतवर बनाने मे मदद करेगा।
• सभी रोड़ियों का गोबर हटाकर वहां पर एक पेड़ लगा दिया जाये और साथ ही उस जगह का सौन्दर्यकरण किया जाये जिस पर मालिकाना हक़ रोड़ी मालिक का ही हो साथ ही उस पेड़ के संरक्षण और जगह की सुंदरता की जिम्मेदारी भी रोड़ी मालिक को दी जाये।
• गांव के गोबर से वर्मी या नादेप पद्दती से खाद बनाने का कार्य किया जाये। (परिस्थिति अनुसार बायोगैस संयन्त्र भी एक विकल्प है)
यह प्रक्रिया करने में समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी जो भारत सरकार द्वारा संचालित स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण द्वितीय में प्रस्तावित है।
• इस प्रक्रिया में सबसे पहले ग्राम समुदाय के लोगों की ग्राम समिति का गठन होगा जिसमें गांव के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होगा।
• समिति द्वारा प्रतिदिन ग्राम का सारा गोबर तोलकर लिया जायेगा ओर उस वजन को रजिस्टर में इंद्राज किया जायेगा।
• इकट्ठा हुए सारे गोबर का समुदायिक स्थल पर वर्मी या नादेप पद्दती द्वारा खाद तैयार किया जायेगा।
• खाद तैयार होने के बाद समिति द्वारा तय अनुपात अनुसार जिसका जितना गोबर आया उसे दे दिया जायेगा।
• समिति द्वारा बचे हुए तैयार खाद को पैक कर बाजार में बेचान भी किया जा सकेगा।
इन सभी स्थितियों एवं प्रावधानों के मद्धेनज़र अगर गावों में पहल की जाये तो प्रशासन एवं ग्राम की बहुत सारी परेशानियो से निजात पायी जा सकेगी साथ ही गांव में कृषि और पशुपालन की पारम्परिक परिपाटी का चलन, रासायनिक खाद से छुटकारा और आर्थिक बचत, रोजगार और मानव संसाधन का विकास, ग्राम सौन्दर्य और पर्यावरण, सामुदायिक भागीदारी और संस्थागत विकास, ग्राम वासियों के स्वामित्व और निगरानी क्षमता के विकास के साथ-साथ ग्राम के समग्र विकास की पक्रिया को बल मिलेगा और देश के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।


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