तेजी से बढ़ता शहरीकरण: विकास या चुनौतियां?

भारत जैसे विकासशील देश में शहरीकरण एक अनिवार्य प्रक्रिया बन चुका है। गांवों से शहरों की ओर लोगों का पलायन, बेहतर जीवनशैली, शिक्षा और रोजगार की तलाश इस प्रक्रिया को तेज कर रहे हैं। नई सड़कों, ऊँची इमारतों और आधुनिक सुविधाओं से सजे शहर विकास की तस्वीर पेश करते हैं। लेकिन क्या यही तस्वीर पूरी सच्चाई बयां करती है?
वास्तविकता यह है कि तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण कई गंभीर समस्याओं को भी जन्म दे रहा है। जल संकट, प्रदूषण, ट्रैफिक, कचरा प्रबंधन, और अनियोजित विस्तार आज हर बड़े शहर की पहचान बन चुके हैं। बढ़ती जनसंख्या के दबाव में बुनियादी सेवाएं जर्जर हो रही हैं और गरीब वर्ग झुग्गियों में रहने को मजबूर है।
पर्यावरणीय संतुलन भी इस अंधाधुंध विकास की भेंट चढ़ रहा है। हरियाली घट रही है, गर्मी बढ़ रही है, और जलस्तर गिरता जा रहा है। यह स्थिति विकास के साथ-साथ भविष्य की बड़ी चेतावनी भी है।
ज़रूरत इस बात की है कि शहरीकरण को योजनाबद्ध और टिकाऊ बनाया जाए। स्मार्ट सिटी, हरित क्षेत्र, और बेहतर सार्वजनिक परिवहन जैसे प्रयासों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही, गांवों को भी विकास की मुख्यधारा में लाना होगा, ताकि वहां के लोग शहरों की ओर पलायन को मजबूर न हों।
शहरीकरण यदि संतुलन और समावेशिता के साथ हो, तो यह असल विकास बन सकता है। वरना यही शहरीकरण आने वाले कल की सबसे बड़ी चुनौती में बदल सकता है।
– प्रतीक पाराशर
(उप संपादक, आवाज़ राजस्थान की)