सरकारी खर्च पर लगाम: 10,000 खाली भवनों का सदुपयोग होगा, नए निर्माण पर अब कलेक्टर की ‘हरी झंडी’ जरूरी
जयपुर (प्रतीक पाराशर )
प्रदेश में सरकारी खर्चे और संसाधनों के सदुपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। एक ओर जहां राज्य के विभिन्न जिलों में 10 हजार से अधिक सरकारी भवन बनकर तैयार होने के बावजूद खाली पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर कई विभाग भवनों की कमी बताकर नए निर्माण की मांग कर रहे हैं। इस विरोधाभासी स्थिति को देखते हुए, मुख्य सचिव सुधांश पंत ने सभी प्रशासनिक विभागों के लिए सख्त हिदायत जारी की है।
अब कलेक्टर से ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ अनिवार्य
मुख्य सचिव पंत ने सभी अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों और सचिवों को निर्देश दिया है कि अब किसी भी नए भवन निर्माण का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजने से पहले, उन्हें जिला कलेक्टर से संपर्क करना होगा।
यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जिले में विभाग के उपयोग के लिए कोई भी सरकारी भवन खाली नहीं है। यदि कलेक्टर उपयुक्त भवन उपलब्ध न होने का प्रमाण-पत्र (Certificate of Non-Availability) जारी करते हैं, तभी वित्त विभाग नए निर्माण की स्वीकृति पर विचार करेगा। इस कदम को वित्तीय नियंत्रण और सरकारी संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
सर्वे में सामने आए ‘बेकार’ पड़े भवन
मुख्य सचिव के अनुसार, हाल ही में सरकार ने जिला कलेक्टरों के माध्यम से राज्यभर में खाली पड़े सरकारी भवनों का विस्तृत सर्वे करवाया था। इस सर्वे में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि दस हजार से भी ज़्यादा राजकीय भवन उपयोगहीन पड़े हैं।
इस सूची को सभी कलेक्टरों के पास उपलब्ध करा दिया गया है, और उन्हें इन भवनों को विभागों को आवंटित करने का अधिकार भी दिया गया है। मुख्य सचिव ने स्पष्ट किया है कि सभी प्रशासनिक विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि नए निर्माण का प्रस्ताव भेजने से पहले, प्राथमिक रूप से इन खाली पड़े भवनों का ही उपयोग किया जाए।
इस निर्णय से न केवल सरकारी खजाने पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ में कमी आएगी, बल्कि पहले से तैयार ढाँचों का भी बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित हो सकेगा।