राजस्थान में उल्टा विकास: विधायकों की सिफारिश पर बन रहीं नगर पालिकाएं, जनता कर रही विरोध

राजस्थान में शहरी विकास की दिशा उलटी बहती नजर आ रही है। सरकार लगातार गांवों को नगर पालिका का दर्जा देकर नई पालिकाएं खोल रही है, जहां विधायकों के वोट बैंक का दबाव हावी हो रहा है। दूसरी ओर, जनता इसका विरोध कर रही है और इन नए निकायों को वापस गांव के रूप में पुनः स्थापित करने की कोशिशों में जुटी है। यह असामान्य स्थिति पहली बार देखी जा रही है, जिसमें विकास के नाम पर ग्रामीण क्षेत्र शहरीकरण की ओर बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोग इसे वापस बदलने की मांग कर रहे हैं।
एक माह में 15 नई पालिकाओं की स्थापना
पिछले एक महीने में सरकार ने 15 नई नगर पालिकाओं की घोषणा की है, लेकिन जनता इनमें से कई जगहों पर विरोध दर्ज करवा रही है। उदाहरण के लिए, जोधपुर जिले की शेरगढ़ नगरपालिका को जनता के विरोध के चलते फिर से गांव का दर्जा दिलवाया गया। अब तक इस सरकार ने 31 नए निकाय स्थापित किए हैं, लेकिन इनमें से कई स्थानों पर स्थानीय नेताओं और जनता के बीच मतभेद उभर कर सामने आए हैं।
राजनीतिक दबाव और जनता का असंतोष
कई मामलों में यह आरोप है कि नेताओं ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण गांवों को नगर पालिका का दर्जा दिलवाया है। पिछली सरकार में भी यह मुद्दा उठा था जब एक पूर्व मंत्री, दयाराम परमार, ने कहा था कि पालिका का दर्जा देने से पहले पूरी ग्राम पंचायत का विकास सुनिश्चित होना चाहिए। स्वायत्त शासन मंत्री और अधिकारियों का कहना है कि नई पालिकाओं की स्थापना मुख्यमंत्री या मंत्रियों के स्तर पर विचार-विमर्श के बाद की जाती है।
वोट बैंक के लिए बने निकाय
जिन गांवों को हाल ही में नगर पालिका का दर्जा मिला है, उनमें नारावणपुर (कोटपूतली), मेड़ता रोड (नागौर), लांबा हरिसिंह (टोंक), डिग्गी (टोंक), मसूदा (ब्यावर), पीपलू (टोंक), धोद (सीकर), बिजोलिया (भीलवाड़ा), सायला (जालोर), जाखल (झुंझुनूं), डूंडलोद (झुंझुनूं), जमवारामगढ़ (जयपुर), कुड़ी भगतासनी (जोधपुर), तिंवरी (जोधपुर), और सुलताना (झुंझुनूं) शामिल हैं।