ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा में लाने का अवसर
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा में लाने का अवसर
कहा और माना जाता है कि हर एक बुरी घटना का कोई ना कोई सुखद परिणाम भी देखने को मिलता है। यह हमने अभी कुछ ही समय पहले देखा और महसूस किया है कि लाखों कामगार अपना रोजगार छोड़कर वापस अपने गावों में आ गये है उन्हें आज भी चिंता है कि अगर फिर हमने शहरों की ओर रुख किया तो हो सकता है हमें वही सब कुछ दोहराना पड़े। इन लाखों कामगारो में हजारों ऐसे भी है जो किसी ना किसी स्किल में माहिर है और वे अपने गांव की दशा और दिशा बदलने का जज़्बा रखते है। आजकल हमारे गावों में स्किल्ड बेरोजगारों की कमी नहीं है सरकार एवं प्रशासन द्वारा इन प्रवासी कामगारो की स्किल, जोखिम एवं अनुभव का उचित उपयोग का प्रबंध करना होगा नहीं तो रिवर्स पलायन की स्थिति का सामना करना ही होगा।
हमारा देश ही नहीं विश्व के अधिकतर देश अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे है लेकिन प्राकृतिक प्रकोप के साथ साथ तृतीय विश्व युद्ध का खतरा भी मंडरा रहा है। सुस्त पड़ी हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा में लाने का एक ही उपाय है ओर वह है रोजगार के उचित साधन उपलब्ध करवाना जिससे आम आदमी की आय का स्त्रोत बनेगा साथ ही मांग का दायरा भी बढ़ेगा जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ साथ राष्ट्रीय आय में भी इजाफा होगा। कोविड- 19 वेश्विक महामारी निश्चित रूप से 2020 से अब तक की सबसे भयावह कारण रही वर्तमान की बीमार पड़ी अर्थव्यवथा के लिए और इसे अपने दौर में लौटने में अभी समय लगना तय है। इस महामारी के कारण कुल आर्थिक नुकसान चार ट्रिलियन डॉलर से अधिक होने की संभावना जताई जा रही है। एशियाई विकास बैंक के अनुसार यह नुकसान वैश्विक सकल घरेलु उत्पाद का लगभग पांच फीसदी है। हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए मनरेगा का विस्तार एवं नवाचार, किसानों को सीधा भुगतान, महमारी के आर्थिक प्रभावो से बचने के लिए सुरक्षा जाल, कृषि श्रम निर्वाह के लिए समुचित साधन, उदारतापूर्वक ऋण प्रदान करना प्रमुख है। भविष्य में हमारे एग्रो उत्पाद, फल एवं सब्जियाँ, मत्स्य पालन, डेयरी उत्पादों को एक कॉर्पोरेट प्रकार की प्रणाली में बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इस प्रकार की गतिविधयो के साथ प्राकृतिक जल निकायो एवं संसाधनों का संवर्धन एवं विकास करना, सतही एवं भुजल को रासायनिक तत्वों, संदूषण एवं प्रदुषण से सुरक्षित करना, जल संचयन करना, जल उपयोग की परंपरागत विधियों को बढ़ाना आदि को हमारे वार्षिक प्लान हेतु निर्धारित गतिविधियों के उद्धेश्यों के साथ शामिल करना होगा।
इन कामगारो को मुख्यधारा में लाने में कुछ परेशानियाँ है जैसे अविकसित ग्रामीण आजीविका तंत्र, प्राकृतिक एवम् उपलब्ध संसाधनों का लचर उपयोग, हस्थकला प्रणाली का पुनर्सयोजन, कम लागत वाला ओद्योगिक सेटअप, बिजली की पर्याप्तता, लो कॉस्ट परिवहन आदि के साथ साथ उत्पाद के बेचान हेतु खुला बाजार एवं नई विपणन प्रणाली का रूपांकन भी आवश्यक है। उत्पादों की पैकेजिंग,
प्रोसेसिंग, सुरक्षित भंडारण, फंड्स के प्रबंधन, कौशल विकास हेतु प्रशिक्षण भी अनिवार्य है। कुल मिलाकर कहा जाय तो कोरोना संकट के बाद नई खुशहाली आएगी ओर यह हमारे ऊपर निर्भर करेगा कि इस वैश्विक संकट के बाद किस तरह अपने आपको मौके को भुनाने के लिए तैयार करते है।
आनंद शर्मा
राष्ट्रीय सलाहकार, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज संस्थान, भारत सरकार