चने की फसल को बचाए रोगों से
*चने की फसल को बचाए रोगों से*
अजमेर, 07 अक्टूबर। रबी के दौरान चने की फसल को रोगों से बचाने के लिए कृषकों को विभागीय निर्देशों की पालना करने की सलाह दी गई है।
कृषि तकनीक केन्द्र के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि चना जयपुर खण्ड जोन 3 ए (जयपुर, अजमेर, टोंक व दौसा जिले) की रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहन फसल हैं। चने के लिए लवण व क्षार रहित, जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती हैं। चने की फसल अधिकतर बारानी क्षेत्रों में ली जाती है। चने की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य अक्टुबर से मध्य नवम्बर हैं। इसलिए जोन 3 ए के सभी कृषकों को सलाह दी जाती हैं कि वे चने की फसल को रोगों से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों का प्रयोग करें एवं भूमि उपचार तथा बीजोपचार करते समय हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहने।
केन्द्र के कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि चने की फसल में जड़ गलन व उकठा जैसे हानिकारक मृदोढ़ रोगों का प्रकोप होता हैं। इनके नियंत्रण के लिए खेतों मेें टा्रईकोडर्मा से भूमि उपचार करना चाहिए। भूमि उपचार करने के लिए बुवाई से पूर्व 10 किलो टा्रईकोडर्मा को 200 किलो आदर््र्रता युक्त गोबर की खाद में मिला कर 10-15 दिन छाया में रखें तथा इस मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा करते समय मिट्टी में मिला देवें। साथ ही विभागीय सिफारिश के अनुसार रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। साथ ही बीज को कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम एवं थाइरम 2.5 ग्राम या 10 ग्राम टा्रईकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोवें।
विजय कुमार पाराशर
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