महिला कुक कम हेल्पर्स का दर्द: सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील पकाने वाली महिलाएं 71 रुपए प्रतिदिन पर मजबूर, गर्मी की छुट्टियों में भी नहीं मिलता मानदेय

आवाज़ राजस्थान की | राज्य के सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील योजना के अंतर्गत कार्यरत महिला कुक कम हेल्पर्स अत्यंत विषम परिस्थितियों में काम कर रही हैं। जहां एक ओर सरकारी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में समय-समय पर वृद्धि की जाती है, वहीं इन महिला कर्मियों को मात्र ₹71 प्रतिदिन के मानदेय पर ही गुजारा करना पड़ रहा है।
🔹 न वेतन का भरोसा, न स्थायित्व की उम्मीद
मेड़ता ब्लॉक क्षेत्र में लगभग 200 महिला कुक कम हेल्पर्स कार्यरत हैं, जिन्हें छात्र संख्या के अनुपात में नियुक्त किया गया है। मार्च तक उन्हें ₹2000 प्रतिमाह मानदेय दिया जाता था, जिसे अप्रैल से ₹2,143 कर दिया गया है। हालांकि, इस राशि से न तो उनके घर का खर्च चल पाता है, न ही भविष्य की कोई सुरक्षा मिलती है।
🔹 मनरेगा श्रमिकों से भी कम वेतन
जहां मनरेगा श्रमिकों को प्रतिदिन ₹281 मजदूरी दी जाती है, वहीं ये महिलाएं ₹71 प्रतिदिन पर कार्यरत हैं। कई महिलाएं तो पूरा दिन स्कूल में बिताती हैं और किसी अन्य कार्य को करने का समय भी नहीं मिलता। इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पर सीधा असर पड़ता है।
🔹 गर्मी की छुट्टियों में भी नहीं मिलता मानदेय
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि शिक्षकों को गर्मियों की छुट्टियों में भी वेतन मिलता है, परंतु कुक कम हेल्पर्स को इस दौरान कोई मानदेय नहीं दिया जाता। जिससे उनकी आर्थिक परेशानियां और बढ़ जाती हैं।
🔹 सरकार से बढ़ोतरी की मांग
महिलाओं ने मानदेय में वृद्धि की मांग करते हुए अपनी समस्याएं साझा की हैं। उनका कहना है कि वे वर्षों से इस कार्य को करती आ रही हैं, लेकिन न वेतन में कोई ठोस वृद्धि हुई और न ही कोई स्थायीत्व मिला। अधिकांश महिला कुक भविष्य में स्थायी नियुक्ति की आशा में काम कर रही हैं।
🔹 “मानदेय सरकार तय करती है, भुगतान में देरी नहीं” – हरिओम शर्मा, आरपी, सीबीईओ कार्यालय, मेड़ता
सीबीईओ कार्यालय से जुड़े अधिकारी हरिओम शर्मा ने बताया कि मानदेय बढ़ाने का निर्णय राज्य सरकार के स्तर का विषय है। स्कूलों को निर्देश दिए गए हैं कि मानदेय प्राप्त होते ही तुरंत भुगतान किया जाए।