चुनावी रण में ‘दो से ज़्यादा’ बच्चों वाले भी भरेंगे हुंकार! सरपंच-प्रधान बनने की राह खुली
जयपुर(प्रतीक पाराशर)। राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा बदलाव दस्तक दे रहा है। राज्य सरकार पंचायतीराज और नगरीय निकाय चुनावों में उम्मीदवार बनने के लिए लागू ‘दो से अधिक बच्चों की बाध्यता’ को खत्म करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। यह नियम, जो 27 नवंबर 1995 के बाद लागू हुआ था, अब हजारों संभावित जनप्रतिनिधियों की राह का रोड़ा बन चुका है।
सरकार ने इस संबंध में पंचायतीराज और स्वायत्त शासन विभाग से अनौपचारिक रिपोर्ट मंगवाई है, जिसके बाद से ही राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज़ हो गई है।
🤝 समान अधिकार की मांग
इस नियम को हटाने की मांग का मुख्य आधार ‘समानता’ का सिद्धांत है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने हाल ही में अपने सरकारी कर्मचारियों को तीन संतान होने पर भी सेवा में बनाए रखने की छूट दी है। अब जनप्रतिनिधियों के लिए भी ऐसी ही राहत की मांग की जा रही है।
मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा, “भेदभाव नहीं होना चाहिए। जब सरकारी कर्मचारियों को तीन संतान की छूट मिली है, तो जनप्रतिनिधियों को भी समान अधिकार मिलने चाहिए।”
उन्होंने पुष्टि की कि इस संवेदनशील विषय पर मुख्यमंत्री स्तर पर चर्चा हुई है, और सभी हितधारकों की राय लेने के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा। सरकार इस नियम परिवर्तन के व्यापक राजनीतिक प्रभाव का भी आकलन कर रही है।
🗓️ नियम की पृष्ठभूमि और संभावित राहत
- मौजूदा नियम: 27 नवंबर 1995 के बाद जिस भी व्यक्ति की तीसरी संतान हुई है, वह पंचायतीराज या शहरी निकाय चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाता है।
- लक्ष्य: नियम में बदलाव से उन हजारों व्यक्तियों को चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा जो मौजूदा प्रावधानों के कारण दौड़ से बाहर थे।
चुनावी बिगुल बजने से पहले सरकार द्वारा यह नीतिगत फैसला लिए जाने की प्रबल संभावना है, जिससे राजस्थान की स्थानीय राजनीति के समीकरण बदल सकते हैं।